आज मुम्बई BMC ने कंगना रनौत का ऑफिस तोड़ डाला तो कंगना रनौत को "आज मेरी तो कल तुम्हारी बारी" मुहावरा याद आ गया, उन्हे लगने लगा कि लोकतंत्र की हत्या हुई है, अपने दर्द का एहसास सब को होता है फिर दुसरों का दर्द क्यों नही दिखता? जिस तरह से आज मुम्बई BMC ने कार्यवाई करते हुए कंगना रनौत का घर तोड़ा है ठीक उसी तरह से गुजरात में पुर्व IPS संजीव भट्ट का घर भी तोड़ा गया था, तब कंगना रनौत को ये क्यों नही लगा कि लोकतंत्र की हत्या हुई है? अगर कंगना रनौत तब संजीव भट्ट के साथ खड़ी होती और सरकार पर गैरकानुनी तरीके से किसी का घर न तोड़ने का दवाब बनाती तो आज उनका खुद का घर भी शायद सुरक्षित होता।
अब देश रक्षक न्युज़ कंगना रनौत और उन सब लोगों से पुछना चाहती है कि कंगना रनौत का ऑफिस टुटना अगर गलत है और देश के लोगों को एकजुट होकर इसका विरोध करना चाहिए तो क्या गुजरात सरकार द्वारा पुर्व IPS संजीव भट्ट का घर तोड़ा जाना गलत नही था? क्या तब लोगों को एकजुट होकर उसका विरोध नही करना चाहिए था? क्या गुजरात सरकार द्वारा पुर्व IPS संजीव भट्ट को राजनितिक दुर्भावना से गिरफ्तार कर जेल में बंद करना गलत नही था? क्या उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा गैरकानुनी तरीके से डॉ० कफील खान पर रासुका लगा कर उन्हे जेल में रखना गलत नही था? उस समय कंगना रनौत को "आज मेरी तो कल तुम्हारी बारी" वाली कहावत क्यों याद नही आई थी? क्यों कंगना रनौत ने संजीव भट्ट का घर तोड़े जाने और उन्हे गिरफ्तार किए जाने के खिलाफ आवाज़ नही उठाया था? क्यों डॉ० कफील खान की गिरफ्तारी और उन पर लगाए गए रासुका पर वह खामोश रही? क्यों उस समय एक जौहर के बाद हजारों जौहर का डर उन्हे नही सता रहा था? क्या सिर्फ अपना दर्द दर्द होता है और दुसरों का दर्द एक तमाशा?
शायद कंगना रनौत से इन सब सवालों के जवाब की उम्मीद ना की जाए लेकिन देश रक्षक न्युज़ देश में संविधान और कानुन का राज फिर से स्थापित होने की कामना करता है, देश रक्षक न्युज़ चाहता है कि देश में किसी भी व्यक़्ति के साथ किसी भी स्तर पर कोई भेदभाव या अन्याय न हो।
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