खाली कंधों पर थोड़ा सा भार चाहिए, बेरोजगार हुँ साहब रोजगार चाहिए। बेरोजगारी मौजुदा समय में भारत की बहुत बड़ी समस्याओं में से एक समस्या है।
इसी समस्या को ध्यान में रख कर लेखक ने दिल को छु लेने वाली ये कविता लिखी है, पढ़िए और हमें अपनी राय कमेंट बॉक्स में बताईए।
बेरोजगारी
खाली कंधों पर थोड़ा सा भार चाहिए,
बेरोजगार हुँ साहब रोजगार चाहिए।
जेब में पैसे नही हैं डिग्री लिए फिरता हुँ,
दिनों दिन अपनी नज़रों में गिरता हुँ,
कामयाबी के घर में खुले किवाड़ चाहिए,
बेरोजगार हुँ साहब रोजगार चाहिए।
टैलेंट की कमी नही है भारत की सड़कों पर,
दुनिया बदल देगें भरोसा करो इन लड़कों पर,
लिखते लिखते मेरी कलम तक घिस गई,
नौकरी कैसे मिले जब नौकरी ही बिक गई,
नौकरी की प्रक्रिया में अब सुधार चाहिए,
बेरोजगार हुँ साहब रोजगार चाहिए।
दिन रात कर के मेहनत बहुत करता हुँ,
सूखी रोटी खा कर ही चैन से पेट भरता हुँ,
भ्रष्टाचार से लोग खुब नौकरी पा रहे हैं,
रिश़्वत की कमाई खुब मज़े से खा रहे हैं,
नौकरी पाने के लिए यहाँ जुगाड़ चाहिए,
बेरोजगार हुँ साहब मुझे रोजगार चाहिए।
लेखक- अज्ञात
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