6 अक्टुबर 1989 भारत के इतिहास का वो स्वर्णिम दिन है जब भारतीय महिलाओं के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा, जी हाँ केरल की रहने वाला एक महिला एम० फातिमा बीबी ने वो इतिहास रची जो न केवल भारतीय महिलाओं के लिए गर्व की बात थी बल्कि एशिया नही देश के सभी महिलाओं के लिए सम्मान की बात थी।
केरल की रहने वाली जस्टिस एम० फातिमा बीबी को 6 अक्टुबर 1989 को भारत के सर्वोच्य न्यायालय की पहली महिला न्यायधीश के रुप में पद पर नियुक्त किया गया और ये क्षण न केवल भारत के गौरवशाली इतिहास के लिए महत्वपुर्ण था बल्कि एशिया महादेश के इतिहास के लिए भी गौरवशाली था क्योंकि एशिया महादेश में ऐसा पहली बार हो रहा था जब एक महिला सुप्रीम कोर्ट में जज के पद पर नियुक्त हो रही थीं।
जस्टिस एम० फातिमा बीबी का जन्म केरल के पथानामथिट्टा में 30 अप्रैल 1927 को हुआ था। उनके पिता का नाम मीरा साहिब और माता का नाम खदीजा बीबी था। उनकी प्रारंभीक शिक्षा कैथीलोकेट हाई स्कुल, पथानामथिट्टा में हुई, और उन्होने युनिवर्सिटी कॉलेज, त्रिवेंद्रम से स्नातक किया, बाद में उन्होने लॉ कॉलेज त्रिवेंद्रम से एल० एल० पी० की डिग्री ली।
14 नवम्बर 1950 को वे अधिवक़्ता के रुप में पंजिकृत हुई और वकालत शुरु किया, बाद में मई 1958 में उन्होने केरल अधीनस्थ न्यायिक सेवा में मुंसिफ के पद पर कार्यभार संभाला जहाँ 1968 में उन्हे अधीनस्थ न्यायधीश के पद पर पदोन्नत किया गया, 1972 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट बनी, 1974 में जिला एंव सत्र न्यायधीश, 1980 में आयकर अपीलीय ट्रिब्युनल की न्यायिक सदस्य बनी और 8 अप्रैल 1983 को उन्हे केरल उच्य न्यायालय में जज के पद पर नियुक्त किया गया।
24 अप्रैल 1992 को सुप्रीम कोर्ट की जज के पद से रिटायर होने के बाद 3 अक्टुबर 1993 को उन्हे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भारत का सदस्य बनाया गया। 1997 में भारत सरकार ने उन्हे तमिलनाडु का राज्यपाल नियुक्त किया जहाँ उन्होने 2001 तक अपनी सेवा दी।
जाते जाते आपको बताता चलुँ कि जस्टिस एम० फातिमा बीबी का पुरा नाम मीरा साहिब फातिमा बीबी था।
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